Abstract:
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यशपाल तथा राँगेयराघाव दोनों ने केवल मानव का केवल एक ही दिशा में संदेश नहीं दिया हैं , अपितु राजनीति , साहित्यक , दार्शनिक सन्देश भी दिये---- दोनों ने एक मिशन को लेकर लिखा हैं ।
उन्होंने शिल्प की विशेषरूप से परवाह नहीं की । सहज और आवश्यक कलाकारिता के अन्तर्गत जो शिल्प आ जाती हैं , वह उसी से सन्तुष्ट रही हैं । उन्होंने कभी भी मानव – समाज के नैतिक आदर्शों का विरोध नहीं किया हैं । उन्होंने यथार्थ के साथ - साथ जीवन के विकास के मानव – चेतना के शाश्वत विकास के संकेतों का विकास पथ के संकेतों का भी उल्लेख किया हैं ।
दोनों कहानीकारों ने हिन्दी कहानी को नई दिशा में गति प्रदान करने में पार्प्त योग दिया हैं । |